गीता के अनुसार कर्म क्या है || 😱 #shorts #bhagwatgeeta #viral #trending

6 months ago
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गीता के अनुसार कर्म क्या है || 😱 #shorts #bhagwatgeeta #viral ##trending
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गीता के अनुसार कर्म का अर्थ है कार्य करना। कर्म एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने शरीर, मन, और बुद्धि का उपयोग करके कार्य करता है। गीता में कर्म को तीन प्रकारों में बांटा गया है:

सात्त्विक कर्म: सत्त्विक कर्म वे कर्म हैं जो अच्छे और सकारात्मक परिणाम देते हैं। ये कर्म प्रेम, करुणा, और दया से प्रेरित होते हैं।

राजस कर्म: राजस कर्म वे कर्म हैं जो न तो अच्छे हैं और न ही बुरे। ये कर्म लालच, अहंकार, और इच्छा से प्रेरित होते हैं।

तामस कर्म: तामस कर्म वे कर्म हैं जो बुरे और नकारात्मक परिणाम देते हैं। ये कर्म क्रोध, घृणा, और हिंसा से प्रेरित होते हैं।

गीता में कहा गया है कि मनुष्य को अपने कर्मों के प्रति सचेत होना चाहिए। उसे अपने कर्मों के परिणामों के बारे में सोचना चाहिए। गीता में कर्मयोग का सिद्धांत भी बताया गया है। कर्मयोग के अनुसार, व्यक्ति को अपने कर्मों को ईश्वर के लिए करना चाहिए। उसे कर्मफल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

गीता में कर्म के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं:

कर्म एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। हर कोई कर्म करता है, चाहे वह चाहे या न चाहे।

कर्म के परिणाम अच्छे या बुरे हो सकते हैं।

कर्मों के परिणाम से बंधन होता है।

कर्मयोग के माध्यम से, व्यक्ति कर्मों से मुक्त हो सकता है।

गीता में कर्म को एक महत्वपूर्ण अवधारणा माना गया है। कर्म को समझने से व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर तरीके से जी सकता है।
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