The Glory of Lord Shiva and Sati | Shiv Mahapuran Episode 69

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The Glory of Lord Shiva and Sati | Shiv Mahapuran Episode 69 @sartatva

शिवपुराण (संक्षिप्त) - रुद्रसंहिता, द्वितीय (सती) खण्ड -अध्याय ४१ - ४२

देवताओं द्वारा भगवान् शिव की स्तुति, भगवान् शिव का देवता आदि के अंगों के ठीक होने और दक्ष के जीवित होने का वरदान देना, श्रीहरि आदि के साथ यज्ञ मण्डप में पधारकर शिव का दक्ष को जीवित करना तथा दक्ष और विष्णु आदि के द्वारा उनकी स्तुति

The chapter describes how the gods praised Lord Shiva for his mercy and power, and how he granted them boons to restore their limbs and lives after the destruction of Daksha’s sacrifice. Lord Shiva also revived Daksha by attaching a goat’s head to his body, and forgave him for his arrogance and disrespect. Lord Shiva then accompanied Lord Vishnu, Lord Brahma and the sages to the sacrificial hall, where he completed the ritual with his own share of offerings. The chapter ends with the gods and sages glorifying Lord Shiva and his consort Sati, who had immolated herself in protest of Daksha’s insult.

देवताओं ने भगवान् शिवजी की अत्यन्त विनय के साथ स्तुति करते हुए अन्त में कहा – आप पर (उत्कृष्ट), परमेश्वर, परात्पर तथा परात्परतर हैं। आप सर्वव्यापी विश्वमूर्ति महेश्वर को नमस्कार है। आप विष्णुकलत्र, विष्णुक्षेत्र, भानु, भैरव, शरणागतवत्सल, त्र्यम्बक तथा विहरणशील हैं। आप मृत्युंजय हैं। शोक भी आपका ही रूप है, आप त्रिगुण एवं गुणात्मा हैं। चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि आप के नेत्र हैं। आप सबके कारण तथा धर्ममर्यादा स्वरूप हैं। आपको नमस्कार है। आपने अपने ही तेज से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है। आप निर्विकार, प्रकाशपूर्ण, चिदानन्दस्वरुप, परब्रह्म परमात्मा हैं। महेश्वर! ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र और चन्द्र आदि समस्त देवता तथा मुनि आपसे ही उत्पन्न हुए है। चूँकि आप अपने शरीर को आठ भागों में विभक्त करके समस्त संसार का पोषण करते हैं, इसलिये अष्टमूर्ति कहलाते हैं। आप ही सबके आदिकारण करुणामय ईश्वर है। आपके भय से यह वायु चलती है। आपके भय से अग्नि जलाने का काम करती है, आपके भय से अग्नि जलानेका काम करती है, आपके भय से सूर्य तपता है और आपके ही भय से मृत्यु सब ओर दौड़ती फिरती है। दयासिन्धो! महेशान! परमेश्वर! प्रसन्न होइये। हम नष्ट और अचेत हो रहे हैं। अतः सब ही हमारी रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये। नाथ! करुणानिधे! शम्भो! आपने अब तक नाना प्रकार की आपत्तियों से जिस तरह हमें सदा सुरक्षित रखा है, उसी तरह आज भी आप हमारी रक्षा कीजिये। नाथ! दुर्गेश! आप शीघ्र कृपा करके इस अपूर्ण यज्ञ का और प्रजापति दक्ष का भी उद्धार कीजिये। भग को अपनी आँखे मिल जायँ, यजमान दक्ष जीवित हो जायँ, पूषा के दाँत जम जायँ और भृगु की दाढ़ी-मूँछ पहले-जैसी हो जाय। शंकर! आयुधों और पत्थरों की वर्षा से जिनके अंग-भंग हो गये हैं, उन देवता आदि पर आप सर्वथा अनुग्रह करें, जिससे उन्हें पूर्णतः आरोग्य लाभ हो। नाथ! यज्ञकर्म पूर्ण होने पर जो कुछ शेष रहे, वह सब आपका पूरा-पूरा भाग हो (उसमें और कोई हस्तक्षेप न करे)। रुद्रदेव! आपके भाग से ही यज्ञ पूर्ण हो, अन्यथा नहीं।

ऐसा कहकर मुझ ब्रह्मा के साथ सभी देवता अपराध क्षमा कराने के लिये उद्यत हो हाथ जोड़ भूमि पर दण्ड के समान पड़ गये।

ब्रह्माजी कहते हैं – नारद! मुझ ब्रह्मा, लोकपाल, प्रजापति तथा मुनियों सहित श्रीपति विष्णु के अनुनय-विनय करने पर परमेश्वर शिव प्रसन्न हो गये। देवताओं को आश्वासन दे हँसकर उनपर परम अनुग्रह करते हुए करुणानिधान परमेश्वर शिव ने कहा।

श्रीमहादेवजी बोले – सुरश्रेष्ठ ब्रह्मा और विष्णुदेव! आप दोनों सावधान होकर मेरी बात सुनें, मैं सच्ची बात कहता हूँ। तात! आप दोनों की सभी बातों को मैंने सदा माना है। दक्ष के यज्ञ का यह विध्वंस मैंने नहीं किया है। दक्ष स्वयं ही दूसरों से द्वेष करते हैं। दूसरों के प्रति जैसा बर्ताव किया जायगा, वह अपने लिये ही फलित होगा। अतः ऐसा कर्म कभी नहीं करना चाहिये, जो दूसरों को कष्ट देने वाला हो। [* परं द्वेष्टि परेषां यदात्मनस्तद्भविष्यति ॥ परेषां क्लेदनं कर्म न कार्यं तत्कदाचन। शिवपुराण रुद्रसंहिता ५-६] दक्ष का मस्तक जल गया है, इसलिये इनके सिर के स्थान में बकरे का सिर जोड़ दिया जाय; भग देवता मित्र की आँख से अपने यज्ञ भाग को देखें।

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