Shiv mahapuran episode 68 भगवान् शम्भु का योगस्थल @sartatva

8 months ago
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Shiv mahapuran episode 68 भगवान् शम्भु का योगस्थल @sartatva

शिवपुराण - रुद्रसंहिता, द्वितीय (सती) खण्ड - - अध्याय ४०

देवताओं सहित ब्रह्मा का विष्णुलोक में जाकर अपना दुःख निवेदन करना, श्रीविष्णु का उन्हें शिव से क्षमा माँगने की अनुमति दे उनको साथ ले कैलास पर जाना तथा भगवान् शिव से मिलाना

This is a chapter from the Rudra Samhita of the Shiva Purana. It narrates the journey of Brahma, along with the gods and sages, to Vishnuloka and then to Mount Kailash to meet Lord Shiva. In this chapter, after hearing the sorrows of Brahma, gods, and sages, Lord Vishnu encourages everyone to go together to Mount Kailash and meet Lord Shiva to seek forgiveness. Narada Muni, the great Siddhas like Sanaka, Kubera, Kinnaras, Apsaras, and great sages are all on Mount Kailash and serve Lord Shiva with utmost joy.

नारदजी ने कहा – विधातः! महाप्राज्ञ! आप शिवतत्त्व का साक्षात्कार कराने वाले हैं। आपने यह बड़ी अद्भुत एवं रमणीय शिवलीला सुनायी है। तात! वीर वीरभद्र जब दक्ष के यज्ञ का विनाश करके कैलास पर्वत पर चले गये, तब क्या हुआ? यह हमें बताइये।

ब्रह्माजी बोले – नारद! रुद्रदेव के सैनिकों ने जिनके अंग-भंग कर दिये थे, वे समस्त पराजित देवता और मुनि उस समय मेरे लोक में आये। वहाँ मुझ स्वयम्भू को नमस्कार करके सबने बारंबार मेरा स्तवन किया। फिर अपने विशेष क्लेश को पूर्ण रूप से सुनाया। उसे सुनकर मैं पुत्रशोक से पीड़ित हो गया और अत्यन्त व्यग्र हो व्यथित चित्त से बड़ी चिन्ता करने लगा। फिर मैंने भक्तिभाव से भगवान् विष्णु का स्मरण किया। इससे मुझे समयोचित ज्ञान प्राप्त हुआ। तदनन्तर देवताओं और मुनियों के साथ मैं विष्णुलोक में गया और वहाँ भगवान् विष्णु को नमस्कार एवं नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति करके उनसे अपना दुःख निवेदन किया। मैंने कहा – 'देव! जिस तरह भी यज्ञ पूर्ण हो, यजमान जीवित हो और समस्त देवता तथा मुनि सुखी हो जायँ, वैसा उपाय कीजिये। देवदेव! रमानाथ! देवसुखदायक विष्णो! हम देवता और मुनि निश्चय ही आपकी शरण में आये हैं।

मुझ ब्रह्मा की यह बात सुनकर भगवान् लक्ष्मीपति विष्णु, जिनका मन सदा शिव में लगा रहता है और जिनके हृदय में कभी दीनता नहीं आती, शिव का स्मरण करके इस प्रकार बोले।

श्रीविष्णु ने कहा – देवताओं! परम समर्थ तेजस्वी पुरुष से कोई अपराध बन जाय तो भी उसके बदले में अपराध करने वाले मनुष्यों के लिये वह अपराध मंगलकारी नहीं हो सकता। विधातः! समस्त देवता परमेश्वर शिव के अपराधी हैं; क्योंकि इन्होंने भगवान् शम्भु को यज्ञ का भाग नहीं दिया। अब तुम सब लोग शुद्ध हृदय से शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले उन भगवान् शिव के पैर पकड़ कर उन्हें प्रसन्न करो। उनसे क्षमा माँगो। जिन भगवान् के कुपित होने पर यह सारा जगत् नष्ट हो जाता है तथा जिनके शासन से लोकपालों सहित यज्ञ का जीवन शीघ्र ही समाप्त हो जाता है, वे भगवान् महादेव इस समय अपनी प्राणवल्लभा सती से बिछुड़ गये हैं तथा अत्यन्त दुरात्मा दक्ष ने अपने दुर्वचनरूपी बाणों से उनके हृदय को पहले से ही घायल कर दिया है; अतः तुम लोग शीघ्र ही जाकर उनसे अपने अपराधों के लिये क्षमा माँगो। विधे! उन्हें शान्त करने का केवल यही सबसे बड़ा उपाय है। मैं समझता हूँ ऐसा करने से भगवान् शंकर को संतोष होगा। यह मैंने सच्ची बात कही है। ब्रह्मन्! मैं भी तुम सब लोगों के साथ शिव के निवास-स्थान पर चलूँगा और उनसे क्षमा माँगूँगा।

देवता आदि सहित मुझ ब्रह्मा को इस प्रकार आदेश देकर श्रीहरि ने देवगणों के साथ कैलास पर्वत पर जाने का विचार किया। तदनन्तर देवता, मुनि और प्रजापति आदि जिनके स्वरूप ही हैं, वे श्रीहरि उन सबको साथ ले अपने वैकुण्ठधाम से भगवान् शिव के शुभ निवास गिरिश्रेष्ठ कैलास को गये। कैलास भगवान् शिव को सदा ही अत्यन्त प्रिय है। मनुष्यों से भिन्न किंनर, अप्सराएँ और योगसिद्ध महात्मा पुरुष उसका भली-भांति सेवन करते हैं तथा वह पर्वत बहुत ही ऊँचा हैं। उसके निकट रुद्रदेव के मित्र कुबेर की अलका नामक महादिव्य एवं रमणीय पूरी है, जिसे सब देवताओं ने देखा। उस पूरी के पास ही सौगन्धिक वन भी देवताओं की दृष्टि में आया, जो सब प्रकार के वृक्षों से हरा-भरा एवं दिव्य था। उसके भीतर सर्वत्र सुगंध फैलानेवाले सौगन्धिक नामक कमल खिले हुए थे। उसके बाहरी भाग में नन्दा और अलकनन्दा – ये दो अत्यन्त पावन दिव्य सरिताएँ बहती हैं, जो दर्शन मात्र से प्राणियों के पाप हर लेती है। यक्षराज कुबेर की अलकापुरी और सौगन्धिक वन को पीछे छोड़कर आगे बढ़ते हुए देवताओं ने थोड़ी ही दूर पर शंकरजी के वटवृक्ष को देखा।

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